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शक्तियों पर प्रश्न उठाने का अधिकार अंतर्निहित है

7 अगस्त 2025

निर्निमेश कुमार



न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका पर प्रायः अतिक्रमण का आरोप लगाया जाता है तथा जब भी वह इसका उल्लंघन करती पाई जाती है तो उसे "लक्ष्मण रेखा" के पीछे धकेल दिया जाता है।


लेकिन सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता द्वारा राहुल गांधी के बारे में हाल ही में की गई टिप्पणियां भी हद से आगे बढ़ जाने का उदाहरण हैं।


इंडिया ब्लॉक ने उचित ही इन टिप्पणियों को अनुचित बताया है। न्यायमूर्ति दत्ता की टिप्पणियाँ, खासकर "आपको (राहुल गांधी) कैसे पता चला कि 2,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर चीनियों ने कब्ज़ा कर लिया है? क्या आप वहाँ थे? क्या आपके पास कोई सबूत है? अगर आप सच्चे भारतीय होते, तो ये सब बातें नहीं कहते?", बेतुकी और अनुचित हैं।


प्रियंका गांधी ने बिल्कुल सही कहा कि यह तय करना सुप्रीम कोर्ट के जजों के अधिकार क्षेत्र में नहीं है कि कौन सच्चा भारतीय है। अदालत को मानहानि के नाम पर हर राजनीतिक बहस में दखल नहीं देना चाहिए। राजनेताओं को आपस में बहस के नियम खुद तय करने दें।


अगर कोई विपक्षी नेता मौजूदा सरकार पर कुछ आरोप लगाता है, तो इसका मतलब राज्य की किसी भी संस्था को बदनाम करना नहीं है। सत्ताधारी दल को हालात के बारे में जो कुछ भी कहना है, उसे चुनौती दिए बिना नहीं छोड़ा जा सकता। राज्य अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही झूठ का सबसे बड़ा सौदागर रहा है।


दुनिया भर में ऐसे अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं। इनमें सबसे चौंकाने वाला वह झूठ है जो अमेरिका ने वर्षों पहले इराक पर हमला करने के लिए फैलाया और उसका इस्तेमाल किया कि उसके पास सामूहिक विनाश के हथियार हैं।


कम्युनिस्ट राज्य वर्षों तक इस झूठ पर टिके रहे कि उन्होंने स्वर्ग को ज़मीन पर गिरा दिया है। राज्य का कोई भी अंग अचूक नहीं होता। उसकी सीमाओं के भीतर उच्च पटल पर सभी समान हैं।


उनका साझा उद्देश्य आम आदमी के कल्याण के लिए कानून के शासन को बनाए रखना है। किसी राष्ट्र के हित तभी सर्वोत्तम रूप से सुरक्षित होते हैं जब सभी स्तंभों को वह भार मिले जो उन्हें सौंपा गया है।

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